प्रशांत किशोर को बीपीएससी परीक्षा में अनियमितताओं के खिलाफ अनशन के दौरान गिरफ्तार किया गया। प्राप्त जमानत को उन्होंने शर्तों के कारण ठुकरा दिया। इससे संबंधित सभी जानकारी पढ़ें।
- प्रशांत किशोर ने बीपीएससी परीक्षा में अनियमितताओं के खिलाफ अनशन किया।
- गांधी मैदान से गिरफ्तार कर पटना सिविल कोर्ट में पेश किया गया।
- सशर्त जमानत को ठुकराते हुए जेल जाने का निर्णय लिया।
- समर्थकों में आक्रोश, प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर आरोप लगाए।
- जेल में भी अनशन जारी रखने का संकल्प।
परिचय
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर बीपीएससी परीक्षा में अनियमितताओं के खिलाफ पिछले चार दिनों से आमरण अनशन पर बैठे थे। इस विरोध के दौरान पुलिस ने उन्हें पटना के गांधी मैदान से गिरफ्तार कर लिया।
मुख्य जानकारी
प्रशांत किशोर को सोमवार सुबह पुलिस ने गांधी मैदान से गिरफ्तार कर लिया। उन्हें पहले हिरासत में लिया गया और इसके बाद औपचारिक गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने उन पर प्रतिबंधित क्षेत्र में धरना देने का आरोप लगाया। इसके बाद उन्हें पटना सिविल कोर्ट में पेश किया गया, जहां उन्हें 25,000 रुपये के मुचलके पर जमानत मिल गई, लेकिन प्रशांत किशोर ने कंडीशनल जमानत लेने से इनकार कर दिया, जिसके कारण उन्हें जेल भेज दिया गया।
प्रशांत किशोर का अनशन जारी
पुलिस ने प्रशांत किशोर को गिरफ्तार करने के बाद पटना एम्स में उनका मेडिकल चेकअप कराया। उन्हें कोर्ट में पेश करते हुए एसडीजेएम आरती उपाध्याय ने कहा कि आगे से इस तरह के धरने प्रदर्शन से बचें जिससे आम लोगों को परेशानी हो। प्रशांत किशोर ने इस शर्त को मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि युवाओं के साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना उनका संवैधानिक अधिकार है और वे इस संघर्ष को जारी रखेंगे।
समर्थकों में आक्रोश
प्रशांत किशोर की गिरफ्तारी से उनके समर्थकों में आक्रोश फैल गया। उन्होंने पुलिस द्वारा की गई इस कार्रवाई के खिलाफ आवाज उठाई और समर्थन में प्रदर्शन किया। समर्थकों ने पुलिस पर आरोप लगाया कि गिरफ्तारी के दौरान पीके को थप्पड़ भी मारा गया। वहीं, प्रशांत किशोर के वकील ने कोर्ट के बाहर स्पष्ट किया कि वे जेल में भी अपना अनशन जारी रखेंगे।
निष्कर्ष
प्रशांत किशोर की गिरफ्तारी ने एक बार फिर से बीपीएससी की परीक्षा और संबंधित अनियमितताओं पर ध्यान खींचा है। उनके इस अनशन और गिरफ्तारी ने राज्य भर में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। अब यह देखना होगा कि प्रशांत किशोर का यह संघर्ष किस दिशा में जाता है और यह बीपीएससी परीक्षा की पारदर्शिता को कैसे प्रभावित करता है।