सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विधान परिषद से राजद नेता के निष्कासन के मामले में कहा कि विधायकों को असहमति व्यक्त करते समय भी सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए।
- सुनील कुमार सिंह को मुख्यमंत्री के खिलाफ अपशब्दों के लिए निष्कासित किया गया।
- सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं को सम्मानजनक व्यवहार की सलाह दी।
- अगली सुनवाई 9 जनवरी को होगी।
परिचय
भारतीय राजनीति में सदनों में नेताओं के आचरण को लेकर सवाल उठते रहे हैं। हाल ही में बिहार विधान परिषद में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता सुनील कुमार सिंह के अशोभनीय आचरण पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी की है।
मामले की पृष्ठभूमि
बिहार विधान परिषद के सदस्य सुनील कुमार सिंह को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ अपशब्द बोलने और उनकी मिमिक्री करने के आरोप में निष्कासित कर दिया गया था। सिंह का निष्कासन पिछले वर्ष 13 फरवरी को सदन में हुई तीखी नोकझोंक के बाद किया गया।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह शामिल थे, ने टिप्पणी की कि विधायकों को असहमति व्यक्त करने पर भी सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए। बेंच ने सुनील कुमार सिंह के वकील, अभिषेक मनु सिंघवी, से कहा कि सदनों में अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब यह नहीं है कि कोई भी अपशब्दों का उपयोग करे।
अभिषेक मनु सिंघवी की दलील
अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में दलील दी कि सुनील कुमार सिंह को केवल एक शब्द के लिए निष्कासित किया गया, जबकि एक अन्य विधान परिषद सदस्य को सिर्फ निलंबित किया गया था। उन्होंने कहा कि सदनों में अभिव्यक्ति की आजादी की व्यापक छूट है।
कोर्ट का सवाल
कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि क्या सदन के अंदर अभिव्यक्ति की आजादी का इस तरह इस्तेमाल किया जाता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि नेताओं को अपने विरोधियों के खिलाफ सम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए।
विशेष सुनवाई की तैयारी
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए 9 जनवरी की तारीख तय की है। कोर्ट ने चुनाव आयोग से उपचुनाव की तारीख पर विचार करने का भी अनुरोध किया है, ताकि कोई कंफ्यूजन न हो।
निष्कासन की प्रक्रिया
सुनील कुमार सिंह को 26 जुलाई को बिहार विधान परिषद से निष्कासित कर दिया गया था। उनकी निष्कासन प्रक्रिया का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हुआ था। सिंह पर आरोप था कि उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मिमिक्री करके उनका अपमान किया और सदन में उनकी योग्यता पर सवाल खड़े किए।
निष्कर्ष
इस पूरे मामले से स्पष्ट होता है कि भारतीय राजनीति में सम्मानजनक व्यवहार और अभिव्यक्ति की आजादी के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से विधायकों को एक महत्वपूर्ण संदेश मिला है कि सदनों में असहमति व्यक्त करते समय भी शिष्टता बनाए रखना जरूरी है।